रांची के अल्बर्ट एक्का चौक के पास एक व्यक्ति ठेले पर जलेबी बेच रहा था। तभी एक सिपाही आया और बोला-हटाओ ठेला। रोड जाम हो रहा है। जहां मन करता है वहीं ठेला लगा देते हैं। जैसे बाप की सड़क हो।...यह फरमान जारी कर वह आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद दूसरा सिपाही आया और बोला-आराम से बेचो। कोई परेशान करे तो मुझे बताओ। जलेबी खिलाओ।
ठेलेवाले ने कहा-अभी एक सिपाही जी ठेला हटाने को बोल गए हैं।
-फिर आए तो कह देना तिवारी जी ठेला यहीं रखने को बोल गए हैं। किसी के कहने पर मत हटाओ। जलेबी खिलाओ।
ठेलेवाले ने कड़ाही से ताज़ा जलेबी छन्ने से निकाला परात में रखा और सबसे पहले एक दोने में निकालकर सिपाही को दिया। इसके बाद ग्राहकों को निपटाने में व्यस्त हो गया। सिपाही जलेबी का दोना लेकर आगे बढ़ गया जहां पहला सिपाही उसके आने का इंतजार कर रहा था। इसके बाद दोनों आराम से गरमा-गरम जलेबी का स्वाद लेने लगे। ठेलेवाले का उनकी ओर ध्यान नहीं गया वह अपने ग्राहकों की मांग पूरी करने में व्यस्त रहा।
ठेलेवाले ने कहा-अभी एक सिपाही जी ठेला हटाने को बोल गए हैं।
-फिर आए तो कह देना तिवारी जी ठेला यहीं रखने को बोल गए हैं। किसी के कहने पर मत हटाओ। जलेबी खिलाओ।
ठेलेवाले ने कड़ाही से ताज़ा जलेबी छन्ने से निकाला परात में रखा और सबसे पहले एक दोने में निकालकर सिपाही को दिया। इसके बाद ग्राहकों को निपटाने में व्यस्त हो गया। सिपाही जलेबी का दोना लेकर आगे बढ़ गया जहां पहला सिपाही उसके आने का इंतजार कर रहा था। इसके बाद दोनों आराम से गरमा-गरम जलेबी का स्वाद लेने लगे। ठेलेवाले का उनकी ओर ध्यान नहीं गया वह अपने ग्राहकों की मांग पूरी करने में व्यस्त रहा।
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